भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के शोधकर्ताओं ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) से युक्त ड्रोन तैयार किया है। यह अवांछित ड्रोन्स की जीपीएस प्रणाली हैक करने में सक्षम है। आईआईटी- एम ने गुरुवार को बताया कि इसे संस्थान के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों वासु गुप्ता और ऋषभ वशिष्ठ ने बनाया है। यह सुरक्षाबल और पुलिस के लिए मददगार होगा। इसकी मदद से संवेदनशील मिलिट्री और सिविल क्षेत्रों के एयर स्पेस में बिना इजाजत घुसने वाले ड्रोन्स से निपटा जा सकेगा।
आईआईटी-एम के छात्रों द्वारा बनाया गया यह ड्रोन दूसरे ड्रोन्स को दिए गए तय कमांड से इतर उनका रास्ता बदलने और उन्हें सुरक्षित लैंड कराने की खूबी रखता है। इसे इंटरनेट से भी कंट्रोल किया जा सकता है। ऐसे में नियंत्रित करने के लिए इसका नजर आना जरूरी नहीं है। मौजूदा समय में ज्यादातार ड्रोन्स को ऑपरेट करने के लिए उन पर नजर बनाए रखना जरूरी है।
नए ड्रोन पर कई प्रकार के परीक्षण करने की तैयारी में शोधकर्ता
इंटरनेट से कंट्रोल किए जाने के कारण इसे दूसरे ड्रोन्स के साथ ही, लोगों, गाडियों और अन्य वस्तुओं को ट्रैक करने के लिए भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है। इसे तैयार करने में आईआईटी- एम के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ रंजीत मोहन ने दोनों छात्रों की मदद की है। डॉ मोहन ने बताया कि हमारा मौजूदा प्रोटोटाइप जमीन और हवा में उड़ रहे टार्गेट को सटीक ढ़ंग से ट्रैक करने में सक्षम है। दूसरे चरण में हम इस पर कई प्रकार के परीक्षण करेंगे। हमारी कोशिश इसे कानून और रक्षा एजेंसियों के मिशन के लिए मुफीद बनाने की है। हमारे इस एरियल व्हीकल से किसी मिशन के लिए एक साथ कई ड्रोन्स को टीम की तरह इस्तेमाल में लाने की संभावनाएं बन रही हैं।
ड्रोन अंधेरे में भी टार्गेट का पता लगाने में सक्षम
इस ड्रोन में मोशन डिटेक्शन एल्गोरिथ्म का एआई के साथ प्रयोग किया गया है। इससे यह अंधेरे में इंफ्रारेड कैमरे न होने के बावजूद काम कर सकता है। ड्रोन तैयार करने वाली टीम में शामिल वासु गुप्ता के मुताबिक, ड्रोन सॉफ्टवेयर की मदद से बताए गए स्पूफ्ड ब्रॉडकास्टेड जीपीएस और रेडियो सिग्नल पर काम करता है। टार्गेट ड्रोन का जीपीएस सेंसर हमारे फेक रेडियो स्टेशन की मदद से लॉक कर दिया जाता है। इसका पावर सेटैलाइट से ट्रांसमिटेड वेभ्स की तुलना में ज्यादा शक्तिशाली होता है। हम रिसिवर एंड पर फेक जीपीएस पैकेट के मैथेमैटिकल मॉडेलिंग की मदद से टाइम डिफरेंस पैदा कर देते हैं। इस तरह हम अवांछित ड्रोन्स के लैटिट्यूट, लॉन्गीट्यूट और अल्टीट्यूड बदल देते हैं।